मै उसी धर्म को मानता हु जो हमे स्वंत्रता, समानता और आपस में भाईचारा रखना सिखाता है|
समाज में अनपढ़ लोग है ये हमारे समाज की समस्या नही है लेकिन जब समाज के पढ़े लिखे लोग भी गलत बातो का समर्थन करने लगते है और गलत को सही दिखाने के लिए अपने बुद्धि का उपयोग करते है यही हमारे समाज की समस्या है|
जीवन लम्बा नही बल्कि बड़ा और महान होना चाहिए |
हम सबसे पहले और अंत में भी भारतीय है|
यदि मुझे लगेगा की सविंधान का दुरूपयोग हो रहा है तो सबसे पहले मै इस सविंधान को ही जलाऊंगा|
कौन सा समाज कितना तरक्की कर चूका है इसको जानने के लिए उस समाज के महिलाओ की डिग्री देख ले|
जो कौम अपना इतिहास तक नही जानती है वे कौम कभी अपना इतिहास भी नही बना सकती है|
भाग्य में विश्वास रखने के बजाय अपने शक्ति और कर्म में विश्वास रखना चाहिए|
एक इतिहास लिखने वाला इतिहासकार सटीक, निष्पक्ष और ईमानदार होना चाहिए|
मानव के बुद्धि का विकास मानव के अस्तित्व का अंतिम लक्ष्य होना चाहिए|
हिन्दू धर्म में कारण, विवेक और स्वतंत्र सोच के विकास के लिए कोई गुंजाइश नही है|
समानता एक कल्पना हो सकता है लेकिन इसे गवर्निंग सिद्धांत के रूप से स्वीकार करना जरुरी है|
एक महान व्यक्ति एक प्रतिष्ठ्ताप्राप्त व्यक्ति से हमेसा इस तरह अलग होता है की वह कभी भी समाज का सेवक बनने को तैयार रहता है|
शिक्षित बने, संघटित रहे और संघर्ष करे|
उदासीनता एक ऐसे किस्म की बीमारी है जो किसी को प्रभावित कर सकती है|
इन्सान का जीवन स्वन्त्रत है इन्सान समाज के विकास के लिए ही नही अपितु स्वय के विकास के लिए पैदा हुआ है|
जब तक आप सामाजिक रूप से स्वत्रंत नही है कानून जो भी आपको स्वत्रंता देता है वह आपके लिए बेमानी है|
एक सफल क्रांति के लिए सिर्फ सामजिक असंतोष होना काफी नही है बल्कि क्रांति की सफलता के लिए न्याय और राजनितिक के साथ सामाजिक अधिकारों में गहरी आस्था होनी चाहिए|
कानून और व्यवस्था राजीतिक शरीर की वो दवा है जो राजीतिक शरीर के बीमार होने पर वह दवा जरुर देना चाहिए|
इतिहास यही बताता है की जहा नैतिकता और अर्थशास्त्र के बीच संघर्ष होता है वहा जीत हमेसा अर्थशास्त्र की ही होती है निहित स्वार्थो को तबतक स्वेच्छा से नही छोड़ा गया है जबतक की मजबूर करने के लिए पर्याप्त ताकत नही लगाया गया हो|
यह जरुरी नही होता है की अत्यधिक धन वाला व्यक्ति अज्ञानी न हो और अत्यधिक निर्धन व्यक्ति उच्च श्रेणी का बुद्धि वाला न हो, अत्यधिक सम्पत्ति भी बुद्धि की कुशाग्रता को कुंठित करती है तो यही निर्धनता में इसे ऊपर ले जाती है|
खुद को दलित इसलिए मानते हो क्योकि दुसरो को उचा मानते हो|
किसी का स्वाद बदला जा सकता है लेकिन जहर को कभी भी अमृत में नही बदला जा सकता है|
पति पत्नी के बीच का घनिष्ट सम्बन्ध घनिष्ठ मित्रो के जैसा होना चाहिए|
किसी देश की सुरक्षित सेना किसी देश की सुरक्षित सीमा से कही बेहतर होती है|
हम ऐसे सयुंक्त एकीकृत आधुनिक भारत का निर्माण करना चाहते है तो सभी धर्मो के शाश्त्रो की संप्रुभता का अंत होना चाहिए|
सविंधान मात्र वकीलों का दस्तावेज नही बल्कि हमारे जीवन का माध्यम है|
न्याय हमेसा समानता के विचार को पैदा करता है|
इस देश में कितने महात्मा आये फिर भी आजतक छूत- अछूत बने हुए है|
ज्ञान व्यक्ति के जीवन जीने का आधार है|
शिक्षा का अधिकार जितना पुरुषो का है उतना ही अधिकार महिलाओ का भी है|
जो मन से स्वन्त्र है वास्तविक में वही लोग स्वन्त्र है|
लोकत्रंत सरकार का महज एक रूप नही है|
हमारे सविंधान में मत का अधिकार एक ऐसी ताकत है जो की किसी ब्रह्मास्त्र से कही अधिक ताकत रखता है|
आप जो कुछ भी अपने महान प्रयासों के जरिये प्राप्त करते है उससे बढ़कर इस दुनिया में आपके लिए कुछ नही है|
मनुष्य नश्वर है, उसी तरह विचार भी नश्वर हैं। एक विचार को प्रचार-प्रसार की जरूरत होती है, जैसे कि एक पौधे को पानी की, नहीं तो दोनों मुरझाकर मर जाते हैं।
पति-पत्नी के बीच का संबंध घनिष्ठ मित्रों के संबंध के समान होना चाहिए।
हिन्दू धर्म में विवेक, कारण और स्वतंत्र सोच के विकास के लिए कोई गुंजाइश नहीं है।
जब तक आप सामाजिक स्वतंत्रता नहीं हासिल कर लेते, कानून आपको जो भी स्वतंत्रता देता है, वो आपके किसी काम की नहीं।
यदि हम एक संयुक्त एकीकृत आधुनिक भारत चाहते हैं तो सभी धर्मों के शास्त्रों की संप्रभुता का अंत होना चाहिए।
कानून और व्यवस्था राजनीतिक शरीर की दवा है और जब राजनीतिक शरीर बीमार पड़े तो दवा जरूर दी जानी चाहिए।
एक महान आदमी एक प्रतिष्ठित आदमी से इस तरह से अलग होता है कि वह समाज का नौकर बनने को तैयार रहता है।
मैं ऐसे धर्म को मानता हूं, जो स्वतंत्रता, समानता और भाईचारा सिखाए।
हर व्यक्ति जो मिल के सिद्धांत कि 'एक देश दूसरे देश पर शासन नहीं कर सकता' को दोहराता है उसे ये भी स्वीकार करना चाहिए कि एक वर्ग दूसरे वर्ग पर शासन नहीं कर सकता।
इतिहास बताता है कि जहां नैतिकता और अर्थशास्त्र के बीच संघर्ष होता है, वहां जीत हमेशा अर्थशास्त्र की होती है। निहित स्वार्थों को तब तक स्वेच्छा से नहीं छोड़ा गया है, जब तक कि मजबूर करने के लिए पर्याप्त बल न लगाया गया हो।
बुद्धि का विकास मानव के अस्तित्व का अंतिम लक्ष्य होना चाहिए।
समानता एक कल्पना हो सकती है, लेकिन फिर भी इसे एक गवर्निंग सिद्धांत रूप में स्वीकार करना होगा।